भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार उसकी सेवा के लिए बनाई गई है। वह क्या, कहां और कैसे कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक इस सरकार को चलाने के लिए टैक्स देता है, इसलिए भी नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है। जनता के यह जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है। 1976 में राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश मामले में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 में विर्णत सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। अनुच्छेद 19 के अनुसार हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्त करने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनता जब तक जानेगी नहीं तब तक अभिव्यक्त नहीं कर सकती। 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार नागरिक सरकार से सूचना मांगेंगे और किस प्रकार सरकार जवाबदेह होगी।
सूचना का अधिकार अधिनियम हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह –
सरकार से कोई भी सवाल पूछ सके या कोई भी सूचना ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल सामग्री का प्रमाणित नमूना ले सके.
सभी सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थाएं, आदि विभाग इसमें शामिल हैं. पूर्णतया निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है। (धारा-2(क) और (ज)
हर सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक लोक सूचना अधिकारी बनाए गए हैं। यह वह अधिकारी हैं जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। (धारा-5(1) लोक सूचना अधिकारी का उत्तरदायित्च है कि वह 30 दिन के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) सूचना उपलब्ध कराए। (धारा-7(1)।
अगर लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का ज़ुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।
लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का करण पूछे (धारा 6(2)
सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधारकों से सूचना मांगने की कोई फीस नहीं ली जाती (धारा 7(5)।
दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी. (केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना फ्री में दी जायेगी। (धारा 7(6)
यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से संबंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर संबंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी। (धारा 6(3)
लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
लोक सूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से संबंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है।
जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता।
यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर संबंधित लोक सूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है (धारा 19(1)।
यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे संबंधित हो) के पास करनी होती है। (धारा 19(3)।
किसी सरकारी विभाग में रुके हुए कार्य के विषय में सूचना के लिए आवेदन (राशनकार्ड, पासपोर्ट, वृद्धवस्था पेंशन, आयु-जन्म-मृत्यु-आवास आदि प्रमाण पत्र बनवाने या इन्कम टैक्स रिफण्ड मिलने में देरी होने, रिश्वत मांगने या बिना वजह परेशान करने की स्थिति में निम्न प्रश्नों के आधार पर सूचना के अधिकार का आवेदन तैयार करें)
आवेदन का प्रारूप
सेवा में,
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)
विषय -सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।
महोदय,
मैने आपके विभाग में ………… तारीख को ……………… के लिए आवेदन किया था। (आवेदन की प्रति संलग्न है) लेकिन अब तक मेरे आवेदन पर सन्तोषजनक कदम नहीं उठाया गया है।
कृपया इसके सन्दर्भ में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध कराएं
1. मेरे आवेदन पर की गई प्रतिदिन की कार्रवाई अर्थात दैनिक प्रगति रिपोर्ट उपलब्ध करायें। मेरा आवेदन किन-किन अधिकारियों के पास गया तथा किस अधिकारी के पास कितने दिनों तक रहा और इस दौरान उन अधिकारियों ने उसपर क्या कार्रवाई की? पूरा विवरण उपलब्ध कराएं
2. विभाग के नियम के अनुसार मेरे आवेदन पर अधिकतम कितने दिनों में कार्यवाही पूरी हो जानी चाहिये थी? क्या मेरे मामले में उपरोक्त समय सीमा का पालन किया गया है?
3. कृपया उन अधिकारियों के नाम तथा पद बताएं जिन्हें मेरे आवेदन पर कार्रवाई करनी थी? लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।
4. अपना काम ठीक से न करने और जनता को परेशान करने वाले इन अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? यह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
5. अब मेरा काम कब तक पूरा होगा?
मैं आवेदन फीस के रूप में 10 रुपए अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं…………..है।
यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से संबंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयावधि के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।
भवदीय
नाम
पता
फोन नं
संलग्नक (यदि कुछ हो)
मुझे सूचना कौन देगा? मैं आवेदन किसे जमा करूं?
सभी सरकारी विभागों के एक या एक से अधिक अधिकारियो को लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया है। आपको अपना आवेदन उन्हें ही जमा करना है। यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे आपके द्वारा मांगी गई सूचना विभाग की विभिन्न शाखाओं से इकट्ठा करके आप तक पहुंचाएं। इसके अलावा बहुत से अधिकारी सहायक लोक सूचना नियुक्त किए गए हैं। इनका काम सिर्फ जनता से आवेदन ले कर उसे सम्बंधित जन सूचना अधिकारी के पास पहुंचाना है।
मुझे जन सूचना अधिकारी के पते की जानकारी कैसे मिलेगी?
यह पता लगाने के बाद कि आपको किस विभाग से सूचना मांगनी है। लोक सूचना अधिकारी के विषय में जानकारी उसी विभाग से मांगी जा सकती है। पर यदि आप उस विभाग में नहीं जा पा रहे हैं या विभाग आपको जानकारी नहीं दे रहा तो आप अपना आवेदन इस पते पर भेज सकते है- लोक सूचना अधिकारी , द्वारा - विभाग प्रमुख (विभाग का नाम व पता। यह उस विभाग प्रमुख की ज़िम्मेदारी होगी कि इसे सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी के पास पहुंचाए। आप विभिन्न सरकारी वेबसाइटों से भी लोक सूचना अधिकारी की सूची प्राप्त कर सकते हैं जैसे -www.rti.gov.in.
क्या कोई जन सूचना अधिकारी मेरा आवेदन यह कह कर अस्वीकार कर सकता है कि आवेदन या उसका कोई हिस्सा उससे सम्बंधित नहीं हैं?
नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता। अनुच्छेद ६(३) के अनुसार वह सम्बंधित विभाग के पास आपके आवेदन को भेजने और इसके बारे में आपको सूचित करने के लिए बाध्य है।
यदि किसी विभाग ने लोक सूचना की नियुक्ति न की हो तो क्या करना चाहिए?
अपना आवेदन लोक सूचना अधिकारी द्वारा विभाग प्रमुख के नाम से नियत शुल्क के साथ सम्बंधित सरकारी अधिकारी को भेज दें। आप अनुच्छेद 18 के तहत राज्य के सूचना आयोग से भी शिकायत कर सकते हैं। सूचना आयुक्त के पास ऐसे अधिकारी पर 25000 रूपये का जुर्माना लगाने का अधिकारी है। जिसने आपका आवेदन लेने से इनकार किया हैं। शिकायत करने के लिए आपको सिर्फ सूचना आयोग को एक साधरण पत्र लिखकर यह बताना है कि फलां विभाग ने अभी तक लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है। और उस पर जुर्माना लगना चाहिए।
क्या लोक सूचना अधिकारी मुझे सूचना देने से मना कर सकता है
लोक सूचना अधिकारी सूचना के अधिकारी कानून के अनुच्छेद 8 में बताए गए विषयों से सम्बंधित सूचनाएं देने से मना कर सकता है। इसमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचनाएं, सुरक्षा अनुमानों से सम्बंधित सूचनाएं, रणनीतिक, वैज्ञानिक या देश के आर्थिक हितों से जुड़े मामले, विधनमण्डल के विशेषाधिकार हनन सम्बंधित मामले से जुड़ी सूचना शमिल हैं। अधिनियम की दूसरी अनुसूची में ऐसी 18 एजेंसियों की सूची दी गई है जहां सूचना का अधिकार लागू नहीं होता है, फिर भी, यदि सूचना भ्रष्टाचार के आरोपों या मानवाधिकारो के हनन से जुड़ी हुई है तो इन विभागों को भी सूचना देनी पड़ेगी।
क्या इसके लिए कोई शुल्क भी लगेगा?
हां, इसके लिए शुल्क निम्नवत है -
आवेदन शुल्क - 10 रूपये
सूचना देने का खर्च - 2 रू प्रति पृष्ठ
दस्तावेजों की जांच करने का शुल्क - जांच के पहले घंटे का कोई शुल्क नहीं पर उसके बाद हर घंटे का पांच रूपये शुल्क देना होगा।यह शुल्क केन्द्र व कई राज्यों के लिए ऊपर लिखे अनुसार है लेकिन कुछ राज्यों में यह इससे अलग है।
मैं शुल्क कैसे जमा कर सकता है?
आवेदन शुल्क के लिए हर राज्य की अपनी अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। आम तौर पर आप अपना शुल्क निम्नलिखित तरीकों से जमा करा सकते हैं-
स्वयं नकद जमा करा के (इसकी रसीद लेना न भूले)
मैं अपना आवेदन कैसे जमा कर सकता हूँ?
आप व्यक्तिगत रूप से, स्वयं लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास जाकर या किसी को भेजकर आवेदन जमा करा सकते हैं। आप इसे लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के पते पर डाक द्वारा भी भेज सकते हैं। केन्द्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 डाकघरों को केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी बनाया गया है। आप इनमें से किसी भी डाकघर में जाकर आवेदन और शुल्क जमा कर सकते हैं। वहां जाकर जब आप सूचना का अधिकारी काउंटर पर आवेदन जमा करेंगे तो वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट देंगे और यह उस डाकघर की ज़िम्मेदारी है कि तय समय सीमा में आपका आवेदन उपयुक्त लोक सूचना अधिकारी तक पहुंचाया जाए।
यदि लोक सूचना अधिकारी या सम्बंधित विभाग मेरा आवेदन स्वीकार नहीं करता तो मुझे क्या करना चाहिए?
आप इसे पोस्ट द्वारा भेज सकते हैं। अधिनियम की धारा 18 के अनुसार आपको सम्बंधित सूचना आयोग में शिकायत भी करनी चाहिए। सूचना आयुक्त के पास उस अधिकारी के खिलाफ २५००० रू तक जुर्माना लगाने का अधिकारी है जिसने आपका आवेदन लेने से मना किया है। शिकायत में आपको सूचना आयुक्त को सिर्फ एक पत्र लिखना होता है, जिसमें आप आवेदन जमा करते समय पेश आने वाली परेशानियों के विषय में बताते हुए लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाने का निवेदन कर सकते हैं।
क्या सूचना प्राप्त करने की कोई समय सीमा है?
हां, यदि आपने जन सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा कर दिया है तो आपको हर हाल में 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आपने आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास डाला है तो यह सीमा 35 दिनों की है। यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्राता को प्रभावित कर सकती है तो सूचना 48 घंटों में उपलबध् करायी जाती है। द्वितीय अनुसुची में शामिल संगठनो के लिए यह सूचना 45 दिनों में, तथा तृतीय पक्ष में 40 दिनों उपलब्ध् कराने का प्रावधन है।
क्या मुझे सूचना मांगने की वजह बतानी होगी?
बिल्कुल नहीं। आपको कोई कारण या अपने कुछ ब्योरों (नाम, पता, फोन नं. के अलावा कोई भी अतिरिक्त जानकारी नहीं देनी पड़ती है। धरा ६(२) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि आवेदक से उसके संपर्क के लिए ज़रूरी जानकारी के अलावा कोई भी जानकारी नहीं मांगी जानी चाहिए।
देश में बहुत से असरदार कानून हैं पर उनमें से कोई काम नहीं करता? आपको इतना विश्वास क्यों है कि यह कानून काम करेगा?
यह कानून काम कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वतन्त्रा भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा कानून बना है जो अधिकारीयो की लापरवाही पर तुरन्त उनकी सीधी जवाबदेही तय कर देता है। यदि सम्बंधित अधिकारी आपको तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध् नहीं कराता तो उसके बाद सूचना आयुक्त 250 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से उस पर जुर्माना लगा सकता है। यदि उपलब्ध् कराई गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम 25000 का जुर्माना लगाया जा सकता है। आपके आवेदन को फालतू बताकर जमा करने और अधूरी सूचना उपलब्ध् कराने के लिए भी जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना अधिकारी की तनख्वाह से काटा जाता है।
क्या अभी तक किसी पर जुर्माना लगा है?
हां, केन्द्र और राज्य सूचना आयुक्तों ने कुछ अधिकारीयों पर जुर्माने लगाए हैं. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली में कई अधिकारीयों पर जुर्माना लगा है।
क्या लोक सूचना अधिकारी पर लगा जुर्माना आवेदक को मिलता है?
नहीं। जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा होती है. हालांकि धारा 19 के अनुसार, आवेदक सूचना मिलने में हुई देरी के कारण हर्जाने की मांग कर सकता है।
यदि मुझे सूचना नहीं मिलती तो मुझे क्या करना चाहिए?
यदि आपको सूचना नहीं मिली या आप सूचना से असन्तुष्ट है, तो आप अधिनियम की धारा१९ के तहत प्रथम
अपील अधिकारी के पास प्रथम अपील डाल सकते हैं।
प्रथम अपील अधिकारी कौन होता है?
हर सरकारी विभाग में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ पद के एक अधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है। सूचना न मिलने या गलत मिलने पर पहली अपील इसी अधिकारी के पास की जाती है।
क्या प्रथम अपील के लिए कोई फॉर्म है?
नहीं, प्रथम अपील के लिए कोई फार्म नहीं है। (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने फॉर्म निर्धरित किये है प्रथम अपील अधिकारी के पते पर आप सादे काग़ज़ पर आवेदन कर सकते हैं। सूचना के अधिकारी के अपने आवेदन की एक प्रति तथा यदि लोक सूचना अधिकारी की ओर से आपको कोई जवाब मिला है तो उसकी प्रति अवश्य संलग्न करें।
क्या प्रथम अपील के लिए कोई शुल्क अदा करना पड़ता है?
नहीं, प्रथम अपील के लिए आपको कोई शुल्क अदा नहीं करना है, हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किया है, अधिक जानकारी के लिए कृपया पुस्तक के अन्त दी गई सूची देखें।
कितने दिनों में मैं प्रथम अपील दाखिल कर सकता हूं?
अधूरी या गलत सूचना प्राप्ति के 30 दिन के भीतर अथवा यदि कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई है तो सूचना के अधिकार का आवेदन जमा करने के 60 दिन के भीतर आप प्रथम अपील दाखिल कर सकते हैं।
यदि प्रथम अपील दाखिल करने के बाद भी सन्तुष्टिदायक सूचना न मिले?
यदि पहली अपील दाखिल करने के पश्चात भी आपको सूचना नहीं मिली है तो आप मामले को आगे बढ़ते हुए दूसरी अपील कर सकते हैं।
दूसरी अपील क्या है?
सूचना के अधिकारी कानून के अन्तर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए दूसरी अपील करना, अन्तिम विकल्प है। दूसरी अपील आप सूचना आयोग में कर सकते हैं। केन्द्र सरकार के विभाग के खिलाफ अपील दाखिल करने के लिए केन्द्रीय सूचना आयोग है। सभी राज्य सरकारों के विभागों के लिए लिए राज्यों में ही सूचना आयोग हैं।
दूसरी अपील के लिए क्या कोई फार्म सुनिश्चित है?
नहीं, दूसरी अपील दाखिल करने के लिए कोई फार्म सुनिश्चित नहीं है (लेकिन दूसरी अपील के लिए कुछ राज्य सरकारों के अपने निर्धरित फार्म भी है केन्द्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग के पते पर आप साधारण कागज पर अपील के लिए आवेदन कर सकते हैं। दूसरी अपील दाखिल करने से पूर्व अपील के नियमों को सावधनी पूर्वक पढ़ें, यदि यह अपील के नियमों के अनुरूप नहीं होगा तो आपकी दूसरी अपील ख़ारिज़ की जा सकती है। राज्य सूचना आयोग में अपील करने के पूर्व राज्य के नियमों को ध्यान से पढें।
दूसरी अपील के लिए मुझे कोई शुल्क अदा करना पड़ेगा?
नहीं, आपको कोई शुल्क नहीं देना है (हालांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किये है)
कितने दिनों में मैं दूसरी अपील दाखिल कर सकता हूँ?
पहली अपील करने के 90 दिनों के अन्दर अथवा पहली अपील के निर्णय आने की तारीख के 90 दिन के अन्दर आप दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं।
सूचना का अधिकारी अधिनियम कब अस्तित्व में आया है यदि आप कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार ने इसे हाल ही में लागू किया है तब आप कैसे कह सकते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों ने इससे फायदा उठाया हैं?
सूचना का अधिकारी अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 से अस्तित्व में आया इससे पूर्व यह 9 राज्यों में लागू था। ये राज्य हैं- जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, आसाम तथा गोवा. इनमें से कई राज्यों में यह पिछले 5 वषों से लागू था और बहुत अच्छा काम कर रहा था।
सूचना के अधिकारों के दायरे में कौन कौन से विभाग आते हैं?
केन्द्रीय सूचना का अधिकारों अधिनियम जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। ऐसे सभी निकाय जिनका गठन संविधान के तहत, या उसके अधीन किसी नियम के तहत, या सरकार की किसी अधिसूचना के तहत हुआ हो इसके दायरे में आते हैं। साथ ही साथ वे सभी इकाईया जो सरकार के स्वामित्व में हों, सरकार के द्वारा नियन्त्रि त हों अथवा सरकार के द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित हों।
आंशिक वित्तपोषित से क्या तात्पर्य है?
सूचना के अधिकार कानून या अन्य किसी कानून में ``आंशिक रूप से वित्तपोषित" की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। सम्भवत: यह इस कानून के इस्तेमाल से समय के साथ-साथ स्वत: इससे सम्बंधित मामलों में न्यायालय के फैसलों से स्पष्ट हो सकेगी।
क्या निजी निकाय भी सूचना का अधिनियम अधिनियम के अन्तर्गत आते हैं?
सभी निजी निकाय जो सरकार द्वारा शासित, नियन्त्रित अथवा आंशिक वित्तपोषित होते हैं सीधे सीधे इसके दायरे में आते हैं। अन्य निजी निकाय अप्रत्यक्ष रूप से इसके दायरे में आते हैं। इसका मतलब है कि यदि कोई सरकारी विभाग किसी नियम कानून के तहत यदि निजी निकाय से कोई जानकारी ले सकता है तो उस सरकारी विभाग में निजी निकाय से जानकारी लेने के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया जा सकता है।
क्या सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 सूचना के अधिकार के आड़े नहीं आता है?
नहीं, सूचना का अधिकारी अधिनियम 2005 की धारा 22 के अन्तर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम , सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 सहित किसी भी अधिनियम के ऊपर है। सूचना का अधिकार कानून बनने के बाद सिर्फ वही सूचना गोपनीय रखी जा सकती है। जिसकी व्यवस्था इस अधिनियम की धरा 8 में की गई है, इसके अलावा किसी सूचना को किसी कानून के तहत गोपनीय नहीं कहा जा सकता।
यदि किसी मामले में सूचना का कुछ हिस्सा गोपनीय हो तो क्या शेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है?
हां, सूचना का अधिकारी अधिनियम के धारा 10 के अन्तर्गत, सूचना के उस भाग की प्राप्ति हो सकती है, जिसे धरा 8 के मुताबिक गोपनीय न माना गया हो।
क्या फाइल नोटिंग की प्राप्ति निषेध् है?
नहीं, फाइल नोटिंग सरकारी फाइलों का एक अहम भाग है और सूचना के अधिकार में इसे उपलब्ध् कराने की व्यवस्था है। यह केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा 31 जनवरी 2006 के एक आदेश में भी स्पष्ट किया गया है।
सूचना प्राप्ति के पश्चात् मुझे क्या करना चाहिए?
इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता। यह इस बात पर निर्भर होगा कि आपने किस प्रकार की सूचना की मांग की है और आपका मकसद क्या है। बहुत से मामलों में केवल सूचना मांगने भर से ही आपका मकसद हल हो जाता है। उदाहरण के लिए अपने आवेदन की स्थिति की जानकारी मांगने भर से ही आपका पासपोर्ट अथवा राशन कार्ड आपको मिल जाता है। बहुत से मामलों में सड़कों की मरम्मत पर पिछले कुछ महीनों में खर्च हुए पैसे का हिसाब मांगते ही सड़क की मरम्मत हो गई। इसलिए सूचना की मांग करना और सरकार से प्रश्न पूछना स्वयं एक महत्वपूर्ण कदम है। अनेक मामलों में यह स्वयं ही पूर्ण है। लेकिन अगर आपने सूचना का अधिकार का उपयोग करके भ्रष्टाचार तथा घपलों को उजागर किया है, तो आप सतर्कता विभाग, सीबीआई में सबूत के साथ शिकायत दर्ज कर सकते हैं अथवा एफ आई आर दर्ज करा सकते हैं। कई बार देखा जाता है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी दोसियो के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती। सूचना के अधिकार के अन्तर्गतआप सतर्कता एजेंसियों पर भी उनके पास दर्ज शिकायतों की स्थितियों की जानकारी मांग कर दबाव डाल सकते हैं। घपलों को मीडिया द्वारा भी उजागर किया जा सकता है, लेकिन दोषियों को सजा मिलने का अनुभव बहुत उत्साह जनक नहीं रहा है। पिफर भी एक बात निश्चित है, इस प्रकार सूचना मांगने और दोषियों को बेनका़ब करने से भविष्य में सुधार होगा। यह अधिकारियो को एक स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्रो के लोग सतर्क हो गये हैं और पहले की भांति किया गया कोई भी गलत कार्य अब छुपा नहीं रह सकेगा। इस प्रकार उनके पकड़े जाने का खतरा बढ़ गया है।
क्या सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगने और इस के माध्यम से भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वालों को परेशान किए जाने की भी संभावना है?
हां, कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें सूचना मांगने वालों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया। ऐसा तब किया जाता है जब सूचना मांगने से बड़े स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा होने वाला हो। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हर आवेदक को ऐसी धमकी का सामना करना पड़ेगा। सामान्यत: अपनी शिकायत की स्थिति जानने या पिफर किसी दैनिक मामले के बारे में जानने के लिए आवेदन करने पर ऐसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसा उन मामलों में हो सकता है जिनके सूचना मांगने से नौकरशाही और ठेकेदारों के बीच साठगांठ का पर्दाफाश हो सकता है या पिफर किसी मापिफया के गठजोड़ के बारे में पता चल सकता है।
फिर मैं सूचना के अधिकार का प्रयोग क्यों करूं?
पूरी व्यवस्था इतनी सड़ चुकी है कि यदि हम अकेले या साथ मिलकर इसे सुधरने की कोशिश नहीं करेंगें तो यह कभी ठीक नहीं होगी। और अगर हम कोशिश नहीं करेंगे तो और कौन करेगा इसलिए हमें प्रयास तो करना ही होगा। लेकिन हमें एक योजना बना कर इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि कम से कम खतरों का सामना करना पड़े। अनुभव के साथ कुछ सुरक्षा और योजनाएं भी उपलब्ध हैं।
ये योजनाएं क्या है?
आप आगे आकर किसी भी मुद्दे पर सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगते हैं तो आवेदन करते ही आप पर कोई हमला नहीं करेगा। पहले तो वो आपको बहलाने या जीतने का प्रयास करेंगे। इसलिए जैसे ही आप कोई असुविधाजनक आवेदन डालेंगे कोई आपके पास आकर बड़ी विनम्रता से आवेदन वापस लेने के लिए कहेगा। आप उस आदमी की बातों से यह समझ सकते हैं कि वह कितना गम्भीर है और वो क्या कर सकता है। अगर आपको मामला गम्भीर लगता है तो अपने 10-15 परिचितों को उसी सार्वजनिक विभाग में वही सूचना मांगने के लिए तुरन्त आवेदन करने के लिए कहें। ये और भी अच्छा होगा, अगर आपके मित्रा देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। अब किसी को पूरे देश में फैले आपके 10-15 परिचितों को एक साथ नुकसान पहुंचाना बहुत मुश्किल होगा। देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले आपके दोस्त डाक के माध्यम से भी आवेदन डाल सकते हैं। इसको ज्यादा से ज्यादा प्रचार देने का प्रयास करें। इससे आपको सही सूचना भी मिल जायेगी और आपको कम से कम खतरों का सामना करना पड़ेगा।
क्या सूचना पाकर लोग सरकारी कर्मचारियों को ब्लैक मेल भी कर सकते है?
इसका जवाब जानने से पहले हम खुद से एक सवाल पूछें- सूचना का अधिकार क्या करता हैयह केवल सच्चाई को जनता के सामने लाता है। यह खुद कोई सूचना नहीं बनाता। यह केवल पर्दा हटाता है और सच्चाई को जनता के समक्ष लाता हू । क्या यह गलत है इसका दुरूपयोग कब हो सकता है। तभी जब किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया है और उसकी सूचना जनता के सामने आने में पकड़े जाने का खतरा हो. सरकार के भीतर चल रही गड़बड़ी अगर जनता के सामने आती है तो इसमें गलत ही क्या है। इसका सामने आना जरूरी है या इसको छुपाया जाना। हां, जब ऐसी कोई सूचना किसी के द्वारा प्राप्त की जाती है तो वह उस अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है। पर हम गलत अधिकारियो की रक्षा क्यों करें। यदि किसी अधिकारी को ब्लैकमेल किया जा रहा है तो वह भारतीय, दण्ड संहिता के तहत ब्लैकमेल के खिलाफ एफ.आई.आर. कराने के लिए स्वतन्त्रा है। अधिकारी को ऐसा करने दीजिए। फिर भी हम आवेदन द्वारा मांगी गई सारी सूचना को वेबसाइट पर डालकर किसी के द्वारा किसी को करने ब्लैकमेल की संभावना को दूर कर सकते हैं। आवेदक उस स्थिति में अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है जब सिर्फ आवेदक को ही सूचना मिली हो और वह उसे आम करने की धमकी दे रहा हों। पर जब सभी जानकारियां वेबसाइट पर डाल दी जाएंगी तो ब्लैकमेल करने की संभावना अपने आप खत्म हो जाएगी।
क्या सरकार के पास सूचना के लिए आवेदनों का ढेर लग जाने से सामान्य सरकारी कामकाज प्रभावित नहीं होगा?
ये डर निराधर है। दुनिया में 68 देशों में सूचना का अधिकार सफलतापूर्वक चल रहा है। संसद में इस कानून के पास होने से पहले ही देश के नौ राज्यों में यह कानून लागू था। इनमें से किसी राज्य सरकार के पास आवेदनों का ढेर नहीं लगा। ये निराधर बातें उन लोगों के दिमाग की उपज है जिनके पास करने को कुछ नहीं है और वे पूरी तरह निठल्ले हैं। आवेदन जमा करने की कार्यवाही में बहुत समय, ऊर्जा और कई तरह के संसाधन खर्च होते हैं। जब तक किसी को वाकई सूचना की जरूरत न हो तब तक वह आवेदन नहीं करता।
आइए, कुछ आंकड़ों पर गौर करें. दिल्ली में 60 से ज्यादा महीनों में 120 विभागों में 14000 आवेदन किए गये हैं। इसका मतलब हर महीने हर विभाग में औसत 2 से भी कम आवेदन। क्या ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार के पास आवेदनों के ढेर लग गये होंगे आपको यह सुनकार आश्चर्य होगा कि अमेरिकी सरकार ने 2003-04 के दौरान सूचना के अधिकार के तहत 3.2 मिलियन आवेदन स्वीकार किये हैं। यह स्थिति तब है जब भारत के विपरीत वहां ज्यादातर सरकारी सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध् हैं और वहां लोगों को आवेदन करने की उतनी जरूरत नहीं है।
कानून को लागू करने के लिए क्या बहुत ज्यादा धन की जरूरत नहीं होगी?
अधिनियम को लागू करने के लिए जो भी पैसा लगेगा वह एक फायदे का सौदा होगा। अमेरिका समेत बहुत से देशों ने इसे समझ लिया है और वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने के लिए बहुत से संसाधन प्रयोग कर रहें हैं। पहली बात तो यह है कि अधिनियम में खर्च सारी राशि सरकार भ्रष्टाचार और दुव्र्यवस्था में कमी आने के कारण उसी साल वसूल कर लेती है. उदाहरण के लिए इस बात के ठोस सबूत मिले हैं कि राजस्थान में सूखा राहत कार्यक्रमों और दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली कार्यक्रमों में गड़बड़ी को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रयोग से बहुत हद तक कम किया गया है। दूसरी बात यह है कि सूचना का अधिकार । लोकतन्त्र के लिए बहुत ज़रूरी है। यह हमारे मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। सरकार में जनता की भागीदारी होने के लिए यह जरूरी है कि पहले जनता यह जाने कि क्या हो रहा है।तो जिस तरह हम अपनी संसद को चलने के लिए सारे खर्चों को ज़रूरी मानते हैं, सूचना का अधिकार अधिनयम को लागू करने के लिए भी सारे खर्चों को जरूरी मानना होगा।
लोगों को बेतुके आवेदन करने से कैसे रोका जा सकता है?
कोई भी आवेदन बेतुका नहीं होता। किसी के लिए पानी का कनेक्शन उसके लिए सबसे बडी समस्या हो सकती है पर अधिकारी इसे बेतुका मान सकते हैं। नौकरशाही में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों की ओर से बेतुके आवेदन का प्रश्न उठाया गया है। सूचना का अधिकार अधिनियम किसी भी आवेदन को निरर्थक मानकर अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं देता। नौकरशाहों का एक वर्ग चाहता है कि लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार दिया जाये कि यदि वह आवेदन को बेतुका समझे तो उसे अस्वीकर कर दे। यदि ऐसा होता है तो हर लोक सूचना अधिकारी हर आवेदन को बेतुका बता कर अस्वीकार कर देगा। यह अधिनियम के लिए बहुत बुरी स्थिति होगी।
क्या फाइलों पर लिखी जाने वाली टिप्पणियां सार्वजनिक करने से ईमानदार अधिकारी अपनी बेबाक राय लिखने से नहीं बचेंगे?
यह गलत है। बल्कि सच तो यह है कि हर अधिकारी जब ये जानेगा कि वह जो भी फाइल में लिख रहा है। वह जनता द्वारा जांचा जा सकता है। तो उस पर जनहित से जुड़ी चीजे लिखने का दबाव होगा। कुछ ईमानदार अधिकारियो ने यह स्वीकार किया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम ने उन्हें राजनीतिक और अन्य कई तरह के दबावों से मुक्त होने में मदद की है। अब वे सीधे कह सकते हैं कि वे गलत काम नहीं करेंगे क्योंकि यदि किसी ने सूचना मांग ली तो घपले का पर्दाफाश हो सकता है। अधिकारियो ने अपने वरिष्ठों से लिखित में आदेश मांगना शुरू भी कर दिया हैं। सरकार फाइल नोटिंग को अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखने की कोशिश करती रही है। इन कारणों को देखते हुए फाइल नोटिंग दिखाने को अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में बने रहना बहुत जरूरी है।
प्रशासनिक अधिकारियो को बहुत से दबावों के अन्दर फैसले लेने पड़ते हैं और जनता यह नहीं समझती?
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, यह उनके दबावों को कम करेगा।
क्या जटिल और वृहद जानकारियां मांगने वाले आवेदनों को अस्वीकार कर देना चाहिए?
यदि किसी को कोई सूचना चाहिए जो कि एक लाख पृष्ठों में समा रही है तो वह सूचना तभी मांगेगा जब उसे वाकई उसकी जरूरत होगी क्योंकि 2 रूपये प्रति पृष्ठ के हिसाब से उसे 2 लाख रू का भुगतान करना होगा। यह एक पहले से ही मौजूद बाध है। यदि आवेदन सिर्फ इस आधार पर रद्द किए जाएंगे तो आवेदक 100 पृष्ठों की सूचनाएं मांगने वाले 1000 आवेदन डाल सकता है, जिससे किसी को भी कोई फायदा नहीं पहुंचने वाला इसलिए आवेदन इस आधर परअस्वीकृत नहीं किए जा सकते।
क्या लोगों को सिर्फ अपने से जुड़ी सूचना मांगनी चाहिए। उन्हें सरकार के उन विभागों से जुड़ी सूचनाएं नहीं मांगनी चाहिए जिसका उनसे कोई सम्बंध् नहीं है?
अधिनियम की धरा 6(2) में स्पष्ट कहा गया है कि आवेदक से सूचना मांगने का कारण नहीं पूछा जाएगा। सूचना का अधिकार अधिनियम इस तथ्य पर आधरित है कि जनता टैक्स देती है और इसलिए उसे जानने का हक है कि उसका पैसा कहां खर्च हो रहा है और उसका सरकारी तन्त्र कैसा चल रहा है। इसलिए जनता को सरकार के हर पक्ष से सब कुछ जानने का अधिकार है। चाहे मुद्दा उससे प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हो या न जुड़ा हो। इसलिए दिल्ली में भी रहने वाला कोई व्यक्ति तमिलनाडू से जुड़ी कोई भी सूचना मांग सकता है।
साभार : http://rtihindi.blogspot.com/
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